Sandeep Kumar

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लेखनी कहानी -10-Mar-2024

अजनबी जुल्फों का समा सजा कर बैठे हैं 
जाने अंजाने में हम किसी से दिल लगा कर बैठे हैं
ना जाने क्या होगा परिणाम इसका मेरे दोस्तों
उनसे प्यार कर हम अपनी दुनिया भुला कर बैठे हैं।।

वह है सातिर न जाने वह क्या कर बैठी हैं
गिला शिकवा या ठेंगा दिखा कर बैठी हैं
जो बोलने से हिचकती है बात ठीक से नहीं करती
वह धोखा की है या वहीं वाला प्यार कर बैठी है।।

दोनों हाथ में उसकी लड्डू है दो पतवार लिए बैठी है
बड़ी चालू पूर्जा है ना जाने किसको तिरस्कार कर बैठी है 
उसे समझने में कहीं हमसे भूल ना हुआ हो या भगवान 
झूठ मुठ में हमने जाने निसार कर उसपर दिल हार बैठे हैं।।

संदीप कुमार अररिया बिहार

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

14-Mar-2024 06:52 PM

Nice

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Mohammed urooj khan

11-Mar-2024 02:19 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Abhinav ji

11-Mar-2024 09:31 AM

Nice👍

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